Sunday, March 7, 2010

वक़्त नहीं

आज के दौर में हर किसी को बहुत कुछ पाने कि चाह है और इस चाह में उन्हें अपनों का ध्यान नहीं, ना ही उनके पास वक़्त है अपनो के लिए| इस कविता में कवी ने उसे बड़े ही नायब तरीके से ज़ाहिर किया है| ये कविता किसने लिखी ये मुझे इल्म तो नहीं, लेकिन ये नायाब कविता में आपके लिए यहाँ लिख रहा हूँ| मुझे ये कविता किसी मित्र ने भेजी है....
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हर ख़ुशी है लोगों के दमन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं

माँ कि लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं

सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं
गैरों कि क्या बात करें
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं

आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक़्त नहीं

पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े
कि थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसासों कि क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
कि हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.......

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