Sunday, March 6, 2011

आँखें


कि हया शर्म लाज लज्जा है तो इन आँखों में
पर कहीं गहराई में छुपी है किसी कि खामोशी
दुनिया को दिखती है सिर्फ इनकी मासूमियत
कि छिपी है कहीं इनमें कोई सच्चाई
है तो कुछ गहराई इन आँखों में
कि दिल का दर्द इनमें सिमट आता है
कुछ तो है इन आँखों में
कि होठों कि मुस्कान तक दबा जाता है

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