Tuesday, September 5, 2017

India @ 70 - Part 2

Since this part is more about the political scenario in India, I will post most parts in Hindi. To start with, I will state a story that I received in a chat group and will follow with some pointers from there-on.

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये; हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- "अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते!! ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ?? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ?? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंचलोग भी आ गये! बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा - नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!
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अब यदि यह कहानी पढ़कर आप सोच रहे हैं कि हमारे राष्ट्र की भी यही हालत है, तो आप सही हैं। विगत ७० वर्षों में हमारे राष्ट्र में हमने भी यही सब किया है।  जात पात के आधार पर, धर्मांधता के आधार पर एवं भाषा के आधार पर हमें बाँटने वाले तथाकथित बुदधिजिवीयोन को हमने अपना नेता चुना एवं राष्ट्र की सत्ता उनके हाथ में सोंप दी। विगत ७० वर्षों में हमने एक बार भी नहीं सोचा की इस राष्ट्र में सामाजिक अराजकता, हिंसा, अपराध, भ्रष्टाचार आदि को बढ़ावा यही तथाकथित बुद्धिजीवी देते आए हैं।  आप और मैं यह सोच कर की हमारे कुछ करने से क्या होगा, ७० वर्षों तक सोते रहे और एक बार भी राष्ट्र के बारे में नहीं सोचा।  

आज वही बुद्धिजीवी राष्ट्र के सैनिकों का अपमान करते है, पड़ोसी राष्ट्र में जा कर अपने राष्ट्र का अपमान करते हैं एवं अपने ही राष्ट्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।  हम आज भी सो रहे हैं, एवं उन्हें अनुकरणीय समझ रहे हैं, या हम ७० वर्ष के इस राष्ट्र की राष्ट्रीय धरोहर को ही खो रहे हैं?

स्वतंत्रता के ७० वर्ष बाद भी हम स्वतंत्र नहीं हैं, हमारी सोच स्वतंत्र नहीं है। हम आज भी सामाजिक अराजकता के अधीन इस राष्ट्र को पंगु बनाने में लीं हैं।

यदि आज हमें कुछ करने की आवश्यकता है तो सर्वप्रथम अपने विचारों को स्वतंत्र कर राष्ट्र निर्माण में सहयोग करने की, ना की किसी युवराज अथवा किसी भांड के पीछे चल स्वयं को स्वतंत्र कहने की।