Friday, May 25, 2012

नमन है मेवाड़ के वीर को

अथक लडूंला अकबर स्यूँ उजड्यो मेवाड़ बसा द्यूंला, जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही, हिंदवाणों सूरज चमकै हो

ये पंक्तियाँ महाराणा प्रताप की गौरव गाथा में लिखी कविता की हैं|  महाराणा प्रताप, सिसोदिया वंश के प्रतापी राजा थे, जिन्होंने मुग़ल साम्राज्य के सामने घुटने टेकने की जगह वन वन भटक मेवाड़ साम्राज्य को स्वतंत्र रखने का प्रण लिया था|

यूँ तो हमनें इतिहास की किताबों में पढ़ा है की महाराणा प्रताप हल्दी घाटी के युद्ध में पराजित हुए थे, किन्तु उन्ती इतिहास कि किताबों में ये नहीं लिखा है कि रणनीतिक तौर पर  सवाई मान सिंग और अकबर दोनों ने इस युद्ध में अपनाई अपनी नीति को गलत स्वीकार किया था| महाराणा प्रताप इस युद्ध के बाद भी पराजित नहीं हुए थे क्योंकि इसके बाद भी उन्होंने अपना प्रण नहीं त्यागा| मेवाड़ की सत्ता एवं प्रशाशन कुम्भलगढ़ से चलाते हुए, उन्होंने मेवाड़ को स्वतंत्र रखा एवं कभी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की|

मेवाड़ के महाराणा को उनके जन्मदिवस पर याद करते हुए मैं उन्हें शत शत नमन करता हूँ|

1 comment:

  1. Interesting aspect of Maharanaji's life, he Never Bowed to any other king and he always fought for freedom. The precedence set by him ran in the Blood of Kings of Mewar who until independence Never ever attended a court of any King as Courtesan.....

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