Sunday, February 17, 2019

जम्मू कश्मीर में सैनिकों का राजनीतिक क़त्ल - गुनहगार कौन???

CRPF के जवानों पर पुलवामा में हुए हमले की ज़िम्मेदारी केवल पाकिस्तान अथवा पाकिस्तान समर्थित आतंकियों की ही नहीं है। इसके लिए हर वो शख़्स ज़िम्मेदार है जिसने जम्मू कश्मीर की समस्या हल करने की जगह उसपर राजनीति की है। इसकी शुरुआत 1947 के विभाजन से शुरू हुई एवं पिछले 72  सालों से चल रही है।  

यदि हम इतिहास की और रूख करते हैं तो पाएँगे कि जम्मू कश्मीर का वर्तमान स्वरूप अंग्रेजों एवं जम्मू के तत्कालीन महाराजा गुलाब सिंह जी के बीच हुई अमृतसर संधि के बाद आया। अगले 100 सालों तक इसपर महाराजा गुलाब सिंह जी (डोगरा) के वंशज राज करते रहे| 1857 में महाराजा गुलाब सिंह जी के बेटे रणबीर सिंह जी राजा बने एवं 1925 में रणबीर सिंह जी के पोते हरी सिंह जी राजा बने| महाराजा हरी सिंह 1925 से 1947 तक जम्मू और कश्मीर के शाषक थे एवं उन्ही का एक निर्णय जम्मू कश्मीर की वर्तमान हालत का प्रथम चरण है| 

जैसा की हम सब जानते हैं कि 1947 में महाराजा हरी सिंह जी ने जम्मू और कश्मीर को एक आज़ाद देश रखने का मन बनाया था, किन्तु पाकिस्तानी हुकूमत जम्मू और कश्मीर को पाकिस्तान में सम्मिलित करना चाहती थी| पाकिस्तान ने सबसे पहले पख्तून मिलिशिया एवं पूँछ के बागी समुदाय के बल पर जम्मू कश्मीर पर हमला किया| महाराजा हरी सिंह ने जब भारत से मदद की गुहार लगाई, तो भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री (जवाहर लाल नेहरू) ने इसे दो देशों के बीच का आपसी मामला बता कर मदद करने से इंकार कर दिया| उधर पख्तून हमलावरों एवं पूँछ के बागी लगातार नरसंहार करते हर जम्मू एवं श्रीनगर की तरफ बढ़ रहे थे, जिसे देख कर महाराजा हरी सिंह जी ने जम्मू और कश्मीर को भारत में शामिल करने की संधि कर ली, एवं भारत ने सेना भेज कर हमलावरों को काफी हद तक खदेड़ दिया| जो मात्र एक हिस्सा छूट गया था वह आज पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है| यहाँ पर यह जानना जरुरी है कि इस सब के बीच में गिलगित बल्तिस्तान के कार्यकारी निरीक्षक (ईस्ट इंडिया कंपनी का एक अधिकारी) ने गिलगित बल्तिस्तान वाले हिस्से को पाकिस्तानी हुकूमत के सुपुर्द कर दिया था अतः पाक अधिकृत कश्मीर में गिलगित बल्तिस्तान का उल्लेख नहीं होता है| 

अब यह एक सोचने वाली बात यह है कि जब भारतीय सेना ने हमलावरों एवं बागियों को पीछे खदेड़ दिया था तो पाक अधिकृत कश्मीर कैसे बना? जी, यहीं पर जम्मू कश्मीर की समस्या का द्वितीय चरण बनता है - तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का इस समस्या के समाधान के लिए UN में जाना| महोदय UN के पास समस्या ले कर गए और LOC (लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल) खींच दी गयी| माने या न माने, सत्य यही है कि द्वितीय चरण में हुई इस गलती का खामियाजा भारत के जवान आज तक भुगत रहे हैं एवं उनके परिवार आज तक माटी के लाल खो रहे हैं| 

तृतीय चरण पर हुई गलती 1965 के युद्ध में| एक बार फिर यहाँ पर पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत जम्मू कश्मीर में घुसपैठिये भेजने की कोशिश की एवं भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री (लाल बहादुर शास्त्री) ने युद्ध की घोषणा कर दी| यहाँ पर तत्कालीन सोवियत यूनियन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मध्यस्थता कि गयी एवं 17 दिनों में युद्धबंदी हुई| कश्मीर समस्या के हल के लिए ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर हुए, किन्तु वहीँ लाल बहादुर शास्त्री की संदेहास्पद मृत्यु हो गई| अब गलती इसमें यह है कि लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु पर एक राजनितिक हत्या का संदेह जाता है, किन्तु इसके कोई प्रमाण नहीं है| उनके पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि भी बिना पोस्ट मोर्टेम के की गयी, अतः कोई प्रमाण मिलने के आसार भी ख़त्म हो गए| जी, यही है इस चरण की गलती| 

उसके बाद 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में हुई बगावत, भारत द्वारा भेजी गई मुक्तिवाहिनी के बदले पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला इस पुरे वाकये का चौथा चरण हैं| 1971 में जहाँ भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में एक आज़ाद देश बनवाया, वहीँ पश्चिमी पाकिस्तान से काफी हद तक पाक अधिकृत कश्मीर, पंजाब एवं सिंध का हिस्सा भी अपने कब्जे में ले लिया था| फिर हुआ शिमला समझौता जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) ने भारत द्वारा कब्जा किया गया संपूर्ण क्षेत्र वापस पाकिस्तान को दे दिया एवं LOC को ही जम्मू और कश्मीर की शाश्कीय रेखा मान लिया| यहाँ पर इंदिरा गांधी द्वारा एक अहम् फैसला गलत हुआ, उन्हें पकिस्तान को मजबूर करना चाहिए था कि संपूर्ण जामु और कश्मीर से पाकिस्तान पीछे हैट जाए तभी भारतीय सेना सिंध एवं पंजाब से पीछे हटेगी| 

इस समस्या का पांचवा महत्वपूर्ण चरण है 1984 का सियाचिन में हुआ एक छोटा सा प्रकरण| इसमें भारत ने ऑपरेशन मेघबूँट द्वारा सियाचिन पर तो कब्ज़ा कर लिया किन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री (इंदिरा गाँधी) ने फिर एक बार एक मौका खो दिया जिससे वे सियाचिन के साथ ही बाकी का कश्मीर, गिलगित बल्तिस्तान वापिस ले सकते थे| 

छठवें चरण पर आता है 1990 में हुए कश्मीरी पंडितों का क़त्ल एवं उनका कश्मीर से पलायन| इसपर ना तो तत्कालीन प्रधानमंत्री ना ही किसी तथाकथित बुद्धिजीवी ने कभी कोई बात कही ना उस समस्या का आज तक कोई निदान हुआ| 

सातवें चरण पर आता है 1999 का कारगिल युद्ध जब तत्कालीन प्रधानमंत्री (अटल बिहारी वाजपेयी) एवं उनके नेतृत्व वाली सरकार ने भारतीय सेना को LOC पार करने से रोका एवं एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोर्चा खो दिया| 

उसके बाद पिछले 20 सालों में और भी कई बार भारत ने पाकिस्तान के इरादों पर पानी फेरा और 2016 में उरी में हुए हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक भी की, किन्तु कोई ठोस परिणाम नहीं आया| आज भी जम्मू कश्मीर में आतंक वादी भारतीय सेना पर हमला कर हानि पहुंचा रहे हैं| 

पाकिस्तान ने धीरे धीरे कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने के अपने इरादे को आज़ाद कश्मीर की लड़ाई का नाम दिया और आज उसे उसने धर्म का अमली जामा पहना कर कश्मीर को इस्लामिक देश बनाने का काम शुरू कर दिया है| इस्लाम के नाम पर, जेहाद के नाम पर, भारत के जगह हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ बगावत के नाम पर पाकिस्तान कश्मीर के लोगों को भड़का रहा है| यहाँ तक की उसने सियाचिन के उठता में एक हिंसा चीन को उपहार स्वरुप भी दे डाला है| इसपर भी भारतीय राजनितिक तबका  केवल UN जाने की बात करता है एवं शिमला समझौते को मानने की बात करता है| 

यहाँ पर यह बताना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है की UN सुरक्षा समिति में भारत को चीन से पहले स्थाई सदस्यता मिलने वाली थी, किन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री (जवाहर लाल नेहरू) ने अपने चीन प्रेम में  वह स्थान चीन को दे दिया एवं बदले में १९६२ का युद्ध पाया| आज वही चीन जैश के संस्थापक मसूद अज़हर को विश्व स्तर का आतंकवादी घोषित करने के खिलाफ UN सुरक्षा समिति में विरोध कर रहा है| 

अब आप ही बताइये की इस पुरे प्रकरण के विभिन्न चरणों का विश्लेषण यही तो कहता है कि भारतीय राजनीति में जम्मू और कश्मीर की समस्या समाधान हेतु कोई ठोस कदम नहीं उठाया| इसी कारण से आज पाकिस्तान अपना सर उनचार कर मसूद अज़हर, हाफ़िज़ सईद एवं अन्य आतंकियों को पनाह देता है एवं पाक अधिकृत कश्मीर (गिलगित बल्तिस्तान सहित) में आतंकियों को ट्रेनिंग देता है| 

और हमारे राजनीतिज्ञ क्या कर रहे हैं? हुर्रियत के लीडर्स को, ओमर अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ़्ती एवं ऐसे अन्य नेताओं की सुरक्षा हेतु दिन के २३ करोड़ खर्च करने में लगे हैं? क्यों? इससे जुड़े अन्य ज्वलंत प्रश्न है जिनके देश की जनता उत्तर चाहती है - 
  1. क्या यही २३ करोड़ कश्मीर की जनता के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकते? 
  2. क्या यही २३ करोड़ सेना के जवानों के लिए खर्च नहीं हो सकते? 
  3. क्या अलगाववादी ताकतों की सुरक्षा माटी के लाल की जान से बढ़कर है? जनता अथवा सेना देश के लिए जीती है, किन्तु अलगाववादी एवं मेहबूबा मुफ़्ती जैसे नेताओं ने इस देश के लिए ऐसा क्या कर दिया है कि उन्हें सुरक्षा देने की जरुरत है?
  4. क्या पकिस्तान को सबक सिखाने के लिए एक बार, केवल एक बार भारत पहले हमला नहीं कर सकता? 
  5. कब तक हम छद्म युद्ध झेलते रहेंगे और अब तक हमारा देश माटी के सपूतों की बलि देता रहेगा?
  6. कब तक मोहन दास करमचंद गांधी के शान्ति के पथ पर चल कर हर गाल पर थप्पड़ एवं पीठ में छुरा खाते रहेंगे? इन्ही ने विभाजन के समय पाकिस्तान को ५० करोड़ रूपए दिलवाये थे, जिसका ब्याज हम आज भी आपने सपूतों के बहते खून में देख रहे है| क्या आज की इस समस्या में इनकी जिम्मेदारी नहीं है?
  7. कब यह देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं भगत सिंह के सबक नहीं पढ़ेगा और पाकिस्तान से धोखा खाता रहेगा?
अंत में यही कहूंगा कि जम्मू और कश्मीर की ज्वलंत समस्या की सम्पूर्ण जिम्मेदारी हमारे लोभी राजनेताओं की है, एवं जब तक वे अपने लोभ से उठ कर देश हित में नहीं सोचेंगे, तब तक हमारे सैनिको को अपनी बलि देनी पड़ेगी| भारत के हर सैनिक की शहादत को जहाँ मेरा सलाम है, वहीँ उनकी मौत का जिम्मेदार भारत का हर राजनेता है जो सत्ता लोभ में विलीन है| 

===========================================

जम्मू और कश्मीर के इतिहास के बारे में पढ़ने के लिए आप निम्न लिंक पर जा सकते हैं -

Thursday, February 14, 2019

Pulwama Terror Attack

February 14, 2019 brought the sad news to me and the nation about the dastardly Pulwama / Awantipora Terror Attack in which 40+ (44 at the time of writing this article) of our braveheart CRPF brothers martyred.  The attack is said to be owned by Jaish-e-Mohammad led by the mastermind Masood Azhar.  Here I would like to bring to the notice that Masood Azhar was arrested in Kashmir and was later released in 1999 by then BJP government in return for the 155 Indian Airlines passengers who were held hostage in Afghanistan. Today, JeM formed by Masood Azhar carried out the deadliest terror attack of decades.

The terror attack was already hinted by the intelligence units once again identified the lack of uniformed communication and uniformed act to avoid the losses of our brave brothers.  The specifics I would note here that lead to this attacks success are - 
  1. Ignorance to collate the intelligence inputs to derive the details
  2. Ignorance of the intelligence inputs and not cordoning the Highway for movement of CRPF convoy (seems armed forces are not considered VVIP, when they need to be)
  3. Ignorance of the intelligence inputs and still going ahead with 2547 strong convoy rather than the norm of 1000 per convoy
  4. Ignorance of the fact that such a big convoy is always monitored by the infamous neighbors of India and this gives them enough time to act even if the date and time wouldn't have been decided in advance
There could be other aspects that the government would look into, but the biggest aspect that needs to be looked at is the way Political atmosphere is packed in India along with the activities by the Pseudo intellects on Twitter - Consider following - 
There are other's too in the fray, but the above two have actually taken the aspects to heights under the pseudo liberal umbrella.  What is the need of the hour is to forget our differences with each other, be it political or be it ideological, and join hands against terror.  Check the one below from the ex CM of J&K and see what she is echoing seems to me a separatist agenda
I mean, a politician rather than condoning the attack is calling foul on the news channels or a party specific activity? How shameful is that when her own family somewhere is part of bowing down to the terrorist demands when her father was the Union Home Minister during VP Singh Government and when her own 23 year old sister Dr. Rubiya Mufti was said to be kidnapped (within the first week her father assumed the position of Union Home Minister).  Now, rather than standing with the nation and the armed forces, she is herself sounding like a separatist? This is seriously a situation that the people and the government should take note of.

The need of the hour is to contain the aspects of what the national sentiment is - Take Strict Action against Pakistan.  Well that is something that the meeting of Cabinet Ministers may mull over and that is something that the Armed forces would have to step in to state anything after assessing the detailed aspects.  But one thing that we need not forget here is about the preparations Pakistan would have made before the attack "If the inputs that ISI trained the attacker to execute this attack stands true". That would mean that Pakistan would have already anticipated that there would be some Re-action from India like the previous Surgical Strike and that would mean that they would be ready to deal with that sort of action.  It would not be right to get caught in the national sentiment of revenge and react to yield anymore loss.  Any decision to take any action needs to be a Joint decision by the Cabinet, the Generals of Armed Forces and the NSA. Something that should be closed and well thought of.

The need of the hour for any pseudo intellect is to stay calm and not stoop down like the above highlighted tweets and keep personal vendetta against channels and anchors away from the National Interest.  They might personally not like each other, but this is a case of National Mourning and they should not use this to spew venom and hate against each other.

With the attack, terrorism has once again raised its head in the Valley and this needs to be dealt with strict action against the terrorists and their sponsors who so ever they are.

My sincere condolences to the families of Martyrs and request to the nation to unite for the Fight Against Terrorism.

Monday, February 11, 2019

भारतीय लोकसभा चुनाव २०१९ - द्वितीय भाग - समीक्षा

प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों के बारे में समीक्षा प्रथम भाग में करने के पश्चात्, अब समय है वर्तमान के विपक्षी दलों एवं उनकी राजनितिक समीक्षा का| 

इस समीक्षा का शुभारम्भ करते है कांग्रेस (ई) से अर्थात जिसे आज हमारे सामने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वरुप में प्रस्तुत किया जा रहा है|  सही मायनो में यदि हम कांग्रेस के बारे में चर्चा करे तो इससे निकले घातक दलों का आज तक इसमें विलय नहीं हुआ है अतः इसे अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कहना उचित नहीं है| कांग्रेस आज अपने आप में ही जनतंत्र का पालन नहीं कर रही है| कांग्रेस आज वंशावली एवं परिवारवाद पर निर्भर करती है| इससे बड़ी बात क्या होगी की विगत समय में तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों का चयन विधानसभा में चयनित सभासदों की जगह दाल के सर्वे सर्वाओं द्वारा लिया गया एवं यह चयन योग्यता के नहीं कथित परिवार के प्रति निष्ठा के अनुरोप रहा| चलिए यदि इससे आगे बढ़ कर हम राष्ट्रहित एवं राष्ट्र की प्रगति के सम्बन्ध में बात करें तो हमें यह जान कर खेद ही होगा कि कांग्रेस के राज्य में भारत की प्रगति अत्यंत धीमी रही है| आप स्वयं ही अनुमान लगाइये कि १९६० में चीन एवं भारत की गढ़पमें मात्रा ९% का अंतर था जो बढ़ कर २०१६-१७ में लगभग ८०% जो गया है| पिछले ४ वर्षों में भारत की प्रगति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता  है कि भारत २०१३ में जीडीपी के मायनो में विश्व का १०वा राष्ट्र था और आज २०१८ में वह ४थे स्थान पर पहुँच चुका है| वर्षानुसार आकलन किया जाए तो हमें यह ज्ञात होगा कि कांग्रेस शाषित वर्षों में योजनाएं समाजवाद (सोशलिस्ट) के आधार पर बनाई जाती थी, ना की राष्ट्र निर्माण आधार पर| कुछ कोंग्रेसी नेताओं के अनुसार राष्ट्र में इतना सामर्थ्य है कि विकास अपने आप अपनी गति से चलेगा, किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि विकास को निति से एक दिशा देनी होती है, अनर्गल विकास केवल समाज को बांटता है| यदि २०१९ के चुनावों के बारे में बात करें तो कांग्रेस की प्रथम उद्घोषणा ही समाजवाद की दिशा में है - न्यूनतम वेतन; अब यदि यह योजना लागू हुई तो सरकार पर सात लाख करोड़ का वित्तीय भार आएगा, और रोजगार उत्पन्न करने की जगह घर बैठे खाने वालों की संख्या बढ़ेगी| अब इस दिशा में समीखा कर आप स्वयं ही निर्णय लें कि क्या कांग्रेस की जीत हमें उचित प्रगति पथ पर ले जाएगी अथवा हम एक बार फिर १० वर्ष पीछे चले जाएंगे?

द्वितीय स्थान पर हम महागठबंधन की बात करते हैं जिसमें समाजवादी दाल एवं बहुजन समाजवादी दाल की खिचड़ी है| यहाँ पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात है कि इन दलों में आपसी समझौता पहले समझा जाए| सूत्रों के अनुसार अखिलेश बाबू को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद चाहिए एवं बहन कुमारी मायावती अर्थात बुआजी को राष्ट्र के प्रधानमंत्री का| इन्होने अभी तक भाजपा हटाओ के आधार पर गठबंधन किया है एवं कांग्रेस को उससे अलग रखा है| इसमें एक और बात को ध्यानपूर्वक देखना होगा कि यहाँ इन दोनों दलों ने अभी तक ना राष्ट्र प्रगति अथवा समाजवादी प्रकरणों पर कोई बात की है, इसकी मुख्य निति अंतर्गत केवल जातीवाद एवं धर्मान्धता की ही बात हो रही है| 

तृतीय पायदान पर तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन आता है| विचारणिया बात यहाँ पर यह आती है कि इस स्टार पर भी ना तो राष्ट्रीय ना ही समाजवादी स्टार पर कोई उद्घोषणा हुई है|  इस पायदान पर २२ दलों का गठबंधन है जिसमें उत्तर प्रदेश के उपरोक्त महागठबंधन का भी समावेश है|  यहाँ पर हम कांग्रेस को भी सम्मिलित पाते हैं, एवं एक अलग ही खिचड़ी पकती दिखाई देती है जिसका प्रमुख उद्देश्य मोदी हटाओ देश बचाओ है| इस मंच पर राष्ट्रीय स्तर पर हम प्रगति एवं राष्ट्रहित के बारे में सुनना चाहेंगे, किन्तु ऐसा कुछ सुनने में नहीं आया है; अपितु इस गठजोड़ में हमने ऐसा नेतृत्व देखा जिसके मुख्यमंत्री स्तर के नेता (ममता बनर्जी, केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू इत्यादि) स्वयं ही धरने पर बैठते हैं, एवं उनकी मांगे गहन विचार विमर्श के बाद अनुचित ही लगती हैं| 

इसके बाद अनेको अनेक घटक दल हैं जो किसी एक करवट बैठेंगे एवं राष्ट्रीय राजनीति में अराजकता एवं आक्रोश भरेंगे| उनपर समय व्यतीत करना उतना महत्वपूर्ण नहीं है|

इस समीक्षा का अंत केवल इतना कह कर करूंगा कि इस वर्ष के चुनावों में जनता को भली भाँती सोच कर किसी एक दाल को चुनना होगा जो राष्ट्रनिर्माण एवं प्रगति पर संकल्पित हो| गठबंधन की सरकार में हर घटक दल का अपना मापदंड होगा एवं हर घटक दल अपने वोटबैंक को खुश रखने का प्रयास करेगा; इससे राष्ट्र पर जो विकट विपदा आएगी, उसका अवलोकन करना अत्यंत आवश्यक है एवं यह एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना हमारा एवं आपका ध्येय होना चाहिए|  









Tuesday, February 5, 2019

भारतीय लोकसभा चुनाव २०१९ - प्रथम भाग

५ फरवरी २०१९ 

आज ३ महीनो के बाद कलम उठाई है और आपके सामने कुछ सत्य लाने के लालसा से यह लेख लिख रहा हूँ| इस लेख में कुछ   सत्यापित घटनाक्रमों के प्रमाण भी संलग्न हैं| 

तो आइये बात करते हैं भारत में २०१९ में होने वाले चुनावों की और उसमें सक्रिय नेताओं के व्यक्तित्व के बारे में। किंतु, मैं भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री अथवा भरतीय जनता पार्टी के बारे में कुछ नहीं लिखूँगा, क्योंकि मैं जनता जनर्दन से उनका सत्य जानने के लिए प्रार्थनारत हूँ। यदि आपको किसी को भी लगे कि आपके पास उनके बारे में कुछ प्रमाणित सत्य है, तो कृपया आप मुझसे सम्पर्क करें।

सर्वप्रथम नेताओं की पंक्ति में नाम आता है श्री श्री १००८ गांधी परिवार के उज्जवल कुलदीपक, भारत के युवराज, सदी के महानायक, श्रोताओं के हर्षवर्धक एवं सर्वोपरि एक महान कलाकार का: जी, जब आप नाम समझ ही गए हैं तो मैं आपके समय की उपेक्षा किए बिना है आपसे निवेदन करूँगा कि इतनी उपाधियों से अलंकृत व्यक्तित्व से आप रास्टर को वंचित ही रखें तो अच्छा होगा।  महोदय नैशनल हेरल्ड प्रकरण में प्रतिभूति पर है, भारतीया आयकर प्राधिकरण ने आप पर १०० करोड़ के लगभग अर्थदंड घोषित किया है। आपकी प्रधानमंत्री बनने की मंशा पर जब youtube पर मैंने खोज की तो जो सामने आया वह आप निम्न लिंक पर स्वयं देख सकते हैं - 

पंक्ति में द्वितीय अघोषित नाम है एक ऐसा नाम जिसका राजनीति से दूर दूर तक जोई सरोकार नहीं रहा और केवल पिछले महीने आप राष्ट्र के सबसे पुराने राजनेतिक दल की महासचिव नियुक्त हुई है एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनी गयीं हैं।  अब नाम तो आप समझ ही गए हैं, तो इनके परम पूजनीय एवं गांधी परिवार के दामाद के बारे में विदेशी पत्रकारों के विचार भी आप  निम्न चलचित्र में देखें एवं सुने।  कृपया ध्यानपूर्वक सुनिएगा की गांधी परिवार को किस प्रकार से अलंकृत किया गया है - 


तीसरे पायदान पर हैं राष्ट्र कि बहन एवं ३ बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही वे सम्माननीय महिला जिन्होंने राष्ट्रहित के लिए नॉएडा में एक भव्य उद्यान बनवाया जिसमें उन्होंने स्वयं की प्रतिमा स्थापित करवायी है। अब आप ही सोचिए कि ६८५ करोड़ रुपयों से बने उद्यान से राष्ट्र अथवा राज्य को कितनी आय हो रही है? आप यह भी सोचिए कि तथाकथित सम्माननीय महिला ने राष्ट्रहित में ऐसा कौन सा कार्य किया कि स्वयं की प्रतिमा ही बनवा ली वह भी स्वयं के जीवित रहते हुए? आपके दिए हुए कर का ऐसा अपमान को क्या आप राष्ट्रवाद कहेंगे? इनके घोटालों के बारे में आप निम्न लिंक पर समस्त ज्ञान बटोंर सकते हैं - 

चतुर्थ पायदान पर नाम आता है राष्ट्र कि दीदी का जो एक समय कॉम्युनिज़म के विरोध में थीं। उसके बाद मुख्यमंत्री बनी एवं शारदा चिटफ़ंड घोटाले से आपका नाम जुड़ा। अभी हाल ही में आपने CBI के कार्य में बाधा उत्तपन्न की एवं उसके विरोध में आपने धरना दिया। इस बारे में आप अधिक जानकारी निम्न लिंक पर देख सकते हैं - 

इसके बाद और भी नाम हैं जिनके बारे में विस्तृत जानकारी आप स्वयं भी खोजें एवं मेरे अगले लेख में भी मैं उन्हें साझा करूँगा।

वन्दे मातरम।।