Monday, February 11, 2019

भारतीय लोकसभा चुनाव २०१९ - द्वितीय भाग - समीक्षा

प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों के बारे में समीक्षा प्रथम भाग में करने के पश्चात्, अब समय है वर्तमान के विपक्षी दलों एवं उनकी राजनितिक समीक्षा का| 

इस समीक्षा का शुभारम्भ करते है कांग्रेस (ई) से अर्थात जिसे आज हमारे सामने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वरुप में प्रस्तुत किया जा रहा है|  सही मायनो में यदि हम कांग्रेस के बारे में चर्चा करे तो इससे निकले घातक दलों का आज तक इसमें विलय नहीं हुआ है अतः इसे अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कहना उचित नहीं है| कांग्रेस आज अपने आप में ही जनतंत्र का पालन नहीं कर रही है| कांग्रेस आज वंशावली एवं परिवारवाद पर निर्भर करती है| इससे बड़ी बात क्या होगी की विगत समय में तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों का चयन विधानसभा में चयनित सभासदों की जगह दाल के सर्वे सर्वाओं द्वारा लिया गया एवं यह चयन योग्यता के नहीं कथित परिवार के प्रति निष्ठा के अनुरोप रहा| चलिए यदि इससे आगे बढ़ कर हम राष्ट्रहित एवं राष्ट्र की प्रगति के सम्बन्ध में बात करें तो हमें यह जान कर खेद ही होगा कि कांग्रेस के राज्य में भारत की प्रगति अत्यंत धीमी रही है| आप स्वयं ही अनुमान लगाइये कि १९६० में चीन एवं भारत की गढ़पमें मात्रा ९% का अंतर था जो बढ़ कर २०१६-१७ में लगभग ८०% जो गया है| पिछले ४ वर्षों में भारत की प्रगति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता  है कि भारत २०१३ में जीडीपी के मायनो में विश्व का १०वा राष्ट्र था और आज २०१८ में वह ४थे स्थान पर पहुँच चुका है| वर्षानुसार आकलन किया जाए तो हमें यह ज्ञात होगा कि कांग्रेस शाषित वर्षों में योजनाएं समाजवाद (सोशलिस्ट) के आधार पर बनाई जाती थी, ना की राष्ट्र निर्माण आधार पर| कुछ कोंग्रेसी नेताओं के अनुसार राष्ट्र में इतना सामर्थ्य है कि विकास अपने आप अपनी गति से चलेगा, किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि विकास को निति से एक दिशा देनी होती है, अनर्गल विकास केवल समाज को बांटता है| यदि २०१९ के चुनावों के बारे में बात करें तो कांग्रेस की प्रथम उद्घोषणा ही समाजवाद की दिशा में है - न्यूनतम वेतन; अब यदि यह योजना लागू हुई तो सरकार पर सात लाख करोड़ का वित्तीय भार आएगा, और रोजगार उत्पन्न करने की जगह घर बैठे खाने वालों की संख्या बढ़ेगी| अब इस दिशा में समीखा कर आप स्वयं ही निर्णय लें कि क्या कांग्रेस की जीत हमें उचित प्रगति पथ पर ले जाएगी अथवा हम एक बार फिर १० वर्ष पीछे चले जाएंगे?

द्वितीय स्थान पर हम महागठबंधन की बात करते हैं जिसमें समाजवादी दाल एवं बहुजन समाजवादी दाल की खिचड़ी है| यहाँ पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात है कि इन दलों में आपसी समझौता पहले समझा जाए| सूत्रों के अनुसार अखिलेश बाबू को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद चाहिए एवं बहन कुमारी मायावती अर्थात बुआजी को राष्ट्र के प्रधानमंत्री का| इन्होने अभी तक भाजपा हटाओ के आधार पर गठबंधन किया है एवं कांग्रेस को उससे अलग रखा है| इसमें एक और बात को ध्यानपूर्वक देखना होगा कि यहाँ इन दोनों दलों ने अभी तक ना राष्ट्र प्रगति अथवा समाजवादी प्रकरणों पर कोई बात की है, इसकी मुख्य निति अंतर्गत केवल जातीवाद एवं धर्मान्धता की ही बात हो रही है| 

तृतीय पायदान पर तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन आता है| विचारणिया बात यहाँ पर यह आती है कि इस स्टार पर भी ना तो राष्ट्रीय ना ही समाजवादी स्टार पर कोई उद्घोषणा हुई है|  इस पायदान पर २२ दलों का गठबंधन है जिसमें उत्तर प्रदेश के उपरोक्त महागठबंधन का भी समावेश है|  यहाँ पर हम कांग्रेस को भी सम्मिलित पाते हैं, एवं एक अलग ही खिचड़ी पकती दिखाई देती है जिसका प्रमुख उद्देश्य मोदी हटाओ देश बचाओ है| इस मंच पर राष्ट्रीय स्तर पर हम प्रगति एवं राष्ट्रहित के बारे में सुनना चाहेंगे, किन्तु ऐसा कुछ सुनने में नहीं आया है; अपितु इस गठजोड़ में हमने ऐसा नेतृत्व देखा जिसके मुख्यमंत्री स्तर के नेता (ममता बनर्जी, केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू इत्यादि) स्वयं ही धरने पर बैठते हैं, एवं उनकी मांगे गहन विचार विमर्श के बाद अनुचित ही लगती हैं| 

इसके बाद अनेको अनेक घटक दल हैं जो किसी एक करवट बैठेंगे एवं राष्ट्रीय राजनीति में अराजकता एवं आक्रोश भरेंगे| उनपर समय व्यतीत करना उतना महत्वपूर्ण नहीं है|

इस समीक्षा का अंत केवल इतना कह कर करूंगा कि इस वर्ष के चुनावों में जनता को भली भाँती सोच कर किसी एक दाल को चुनना होगा जो राष्ट्रनिर्माण एवं प्रगति पर संकल्पित हो| गठबंधन की सरकार में हर घटक दल का अपना मापदंड होगा एवं हर घटक दल अपने वोटबैंक को खुश रखने का प्रयास करेगा; इससे राष्ट्र पर जो विकट विपदा आएगी, उसका अवलोकन करना अत्यंत आवश्यक है एवं यह एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना हमारा एवं आपका ध्येय होना चाहिए|  









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