I guess most of you would have been aware of the situation where one of the Chief Minister is identified as wearing the Money Garland and spending thousands of croses of Rupees on parks and statues. Now the same CM has identified a nice way to Distract Public Attention by assigning a DIG to probe the "Bee Attack' on one of the Party Rally. Interesting an FIR too has been launched as Reported
I had the news of DIG probe order, but then an FIR launched under Sections 435 (lighting fire to cause damage) and 285 (causing disturbance in any public place) is something very much a way to Divert Public Attention and an Attempt to Gain Public Sympathy. Who knows that tomorrow they might slap Section 307 - Attempt to Murder on some one who might be identified as the culprit. Yeah certainly when Section 435 (lighting fire to cause damage) can be slapped, there is high possibility to gain more sympathy for the so called leader. The leader who spent money on parks and statues and wore money garland, and yeah spent lavish money to celebrate b'day.
Sounds funny, but it is the case where the Governance and Public Welfare has been mocked, poverty is ever increasing, but the Leader is busy trying to evade all the public property for one's own welfare. One of the biggest Shame to the world's biggest Democracy......
Thursday, March 18, 2010
Tuesday, March 9, 2010
Save Trees - A campaign Request
Vaibhav's post Save Trees made me wonder on what the Save Tree Campaign is? Why the Save Tree Campaign is? and Why we want to save Trees? After a lot of pondering on the topic and then brain searching I established that it's the selfish nature we have that we want to Save trees. Certainly our selfishness. Then I got confused, where does selfishness come in as we have enough to survive through our life, its more of selflessness towards the coming generations.....
Though confused, but yes I am determined that we need to save trees, we need to save forests and we need to save the wild animals that have their habitat in the wild woods. You must be thinking WHY? Well lets go through the following points to answer this Why -
Do you want to join me in this initiative? Do you want to create a wave?????
So do I hear a Yes from you all who read this?
Though confused, but yes I am determined that we need to save trees, we need to save forests and we need to save the wild animals that have their habitat in the wild woods. You must be thinking WHY? Well lets go through the following points to answer this Why -
- Trees and forests are the source of clean air and most important is they are the source of oxygen that we thrive on.
- Trees are the source that help us conserve the fertile soil and the water
- Trees are the source of Food (don't we all love fruits?)
- Trees are the source of Fuel (Dry wood) (Fossil Fuel - Oil etc)
- Trees make forests that are habitat of the wild animals and these wild animals over ages would turn to be the source of Fossil Fuel for future generations (as is at the rate we are using the current resources, we would drain out all the oil in say next 100 or 200 years)
Do you want to join me in this initiative? Do you want to create a wave?????
So do I hear a Yes from you all who read this?
तिरंगे कि कहानी
काफी दिनों से मन में गुबार था
तिरंगे की कहानी का अम्बार था
कि सोचा बहुत कैसे कहूँ
लेकिन दर्द ऐसा है कब तक सहूँ
हुआ कुछ यूँ कि तिरंगा मिला सपने में
कहानी थी उसकी इतनी सर्द
ना थी उसमें हद्द
अब कैसे सहूँ में ये दर्द
तिरंगा खुश होता गर
उसे शहीद पर चढ़ाया जाए
उसे लाल किले कि प्राचीर पर फहराया जाए
उसे आजादी का परचम बनाया जाए
तिरंगा दुखी है क्योंकि
उसे भ्रष्ट नेताओं पर लहराया जाता है
उसे गुंडे बदमाशों कि गाडी पर पाया जाता है
उसे सरे आम बेईज्ज़त किया जाता है
कहना है तिरंगे का कुछ यूँ
कि उसे हर घर पर लहराना है
उसे हमारे दिलों में बस जाना है
उसे जात पात से परे जाना है
चाह है उसकी उस पुष्प सी
कि उस पथ पर दें उसको फहरा
मातृभूमि की सेवा में
जिस पथ चले वीर अनेक
__________________________
आखिरी कुछ पंक्तियाँ श्री माखनलाल चतुर्वेदी कि कविता - "पुष्प की अभिलाषा" से प्रेरित हैं|
तिरंगे की कहानी का अम्बार था
कि सोचा बहुत कैसे कहूँ
लेकिन दर्द ऐसा है कब तक सहूँ
हुआ कुछ यूँ कि तिरंगा मिला सपने में
कहानी थी उसकी इतनी सर्द
ना थी उसमें हद्द
अब कैसे सहूँ में ये दर्द
तिरंगा खुश होता गर
उसे शहीद पर चढ़ाया जाए
उसे लाल किले कि प्राचीर पर फहराया जाए
उसे आजादी का परचम बनाया जाए
तिरंगा दुखी है क्योंकि
उसे भ्रष्ट नेताओं पर लहराया जाता है
उसे गुंडे बदमाशों कि गाडी पर पाया जाता है
उसे सरे आम बेईज्ज़त किया जाता है
कहना है तिरंगे का कुछ यूँ
कि उसे हर घर पर लहराना है
उसे हमारे दिलों में बस जाना है
उसे जात पात से परे जाना है
चाह है उसकी उस पुष्प सी
कि उस पथ पर दें उसको फहरा
मातृभूमि की सेवा में
जिस पथ चले वीर अनेक
__________________________
आखिरी कुछ पंक्तियाँ श्री माखनलाल चतुर्वेदी कि कविता - "पुष्प की अभिलाषा" से प्रेरित हैं|
Monday, March 8, 2010
मर्द का दर्द
एक फिल्म बनी थी "मर्द" जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने कहा था मर्द को दर्द नहीं होता| किन्तु आज के माहोल में जब हम नज़र उठा कर अपने चारों और देखते हैं तो ये एहसास होता है कि मर्द को ही दर्द होता है| आप ये सोचेंगे कि कैसे?? तो सोचिये कि आज के इस ज़माने में हम International Womans' Day मानते हैं, Man's Day नहीं :))
आज हम बात करते हैं स्त्रियों को काबिल बनाने कि, किन्तु कभी ये सोचा है कि वे खुद कितनी काबिलियत रखती हैं?
मैं आज के दौर में आदमी / मर्द के दर्द को कुछ इस तरह व्यक्त करूँगा -
बेचारा मर्द क्या करे इस ज़माने में
गर औरत पर हाथ उठाए तो जालिम
गर पिट जाए तो बुजदिल
गर औरत को गैर के साथ देख कर लड़े तो शक्की
गर देख कर भी चुप रह जाए तो बे-गैरत
गर घर से बहार रहे तो आवारा
गर घर में बैठे तो नाकारा
बच्चों को डांटे मारे तो ज़ालिम
न डाटें तो लापरवाह
गर औरत को नौकरी से रोके तो झक्की
गर औरत को नौकरी करने दे तो जोरू का गुलाम
अरे आखिर ये करे तो क्या करे
हालात यूँ कहिये कि दर्द है पर बयां नहीं कर सकता
गर बयां कर दे तो मर्द नहीं रह सकता
:))
आज हम बात करते हैं स्त्रियों को काबिल बनाने कि, किन्तु कभी ये सोचा है कि वे खुद कितनी काबिलियत रखती हैं?
मैं आज के दौर में आदमी / मर्द के दर्द को कुछ इस तरह व्यक्त करूँगा -
बेचारा मर्द क्या करे इस ज़माने में
गर औरत पर हाथ उठाए तो जालिम
गर पिट जाए तो बुजदिल
गर औरत को गैर के साथ देख कर लड़े तो शक्की
गर देख कर भी चुप रह जाए तो बे-गैरत
गर घर से बहार रहे तो आवारा
गर घर में बैठे तो नाकारा
बच्चों को डांटे मारे तो ज़ालिम
न डाटें तो लापरवाह
गर औरत को नौकरी से रोके तो झक्की
गर औरत को नौकरी करने दे तो जोरू का गुलाम
अरे आखिर ये करे तो क्या करे
हालात यूँ कहिये कि दर्द है पर बयां नहीं कर सकता
गर बयां कर दे तो मर्द नहीं रह सकता
:))
Sunday, March 7, 2010
वक़्त नहीं
आज के दौर में हर किसी को बहुत कुछ पाने कि चाह है और इस चाह में उन्हें अपनों का ध्यान नहीं, ना ही उनके पास वक़्त है अपनो के लिए| इस कविता में कवी ने उसे बड़े ही नायब तरीके से ज़ाहिर किया है| ये कविता किसने लिखी ये मुझे इल्म तो नहीं, लेकिन ये नायाब कविता में आपके लिए यहाँ लिख रहा हूँ| मुझे ये कविता किसी मित्र ने भेजी है....
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हर ख़ुशी है लोगों के दमन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
माँ कि लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं
गैरों कि क्या बात करें
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं
आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक़्त नहीं
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े
कि थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसासों कि क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
कि हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.......
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हर ख़ुशी है लोगों के दमन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
माँ कि लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं
गैरों कि क्या बात करें
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं
आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक़्त नहीं
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े
कि थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसासों कि क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
कि हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.......
Monday, March 1, 2010
Hockey World Cup - Shivendra suspended for 3 matches, team appeals against it
I want you to take a look at : Shivendra suspended for 3 matches, team appeals against it
My take on this case -I saw the incident during the match and then repeated footage also, I find it a genuine case of what a hockey player would call it as - An Accidental incident. I think Read read a little too much in the whole issue and went a little too harsh on the case. There if we see the whole footage time and again, we will find that it was an effort on part of Shivendra Singh to run faster and in the effort he picked up the stick in both hands. Yes that's a natural reaction in the momentum of the game. I am saying so because I myself had been a hockey player. If a player wants to run faster than the opponent to reach the ball, it is natural instinct to hold the stick in both hands so a to avoid toppling over one's own stick.
I guess Read needs to be sent for some good Hockey Coaching Classes
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