Words From Thoughts
Sunday, May 27, 2007
दिल की कलम से
कीसीं
ने
कभी
सही
कहा
था
...
की
दीखता
है
मंजर
असली
बजते
हैं
साज़
सारे
...
जब
छेड़
दो
तार
दिल
के
नहीं
मालुम
क्यों
....
तुमने
आवाज़
दी
...
और
हम
रो
दीये
....
आन्सुयों
की
जगह
कलम
से
कागज़
पर
ये
शब्द
बीखेर
दीये
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