Words From Thoughts
Monday, August 25, 2008
दर्द-ऐ-दिल
कि
अभी
तो
हुई
शुरू
बात
दिल
कि
है
और
अभी
तुम
जाते
हो
कि
अभी
तो
नासूर
-
ऐ
-
दिल
को
छेड़ा
है
और
तुम
जाते
हो
कि
अभी
तो
खून
-
ऐ
-
जिगर
बाकी
है
और
तुम
जाते
हो
ऐ
दोस्त
जुल्म
यूँ
न
कर
न
हो
गर
हिम्मत
-
ऐ
-
नज़र
छेड
के
दास्ताँ
-
ऐ
-
जिगर
हमें
यूँ
बेजार
न
कर
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