Words From Thoughts
Thursday, April 8, 2010
मेरा अक्स
गर खुदा ने कभी मुझसे कहा होता
...
रुखसत हो तू हो फारिग अपनी कलम से
मैं कहता ऐ-खुदा
ये कलम है मेरी ज़िन्दगी मेरी तमन्ना
कि ना कर इसको जुदा तू मुझसे
न कर मेरे इश्क को रुसवा
गर कहीं मैं हूँ कगार पर
तो यही है वोह मेरा अक्स....
2 comments:
Vaibhav Bhandari
April 8, 2010 at 11:41 AM
Wah! Wah! kya khoob.....dil kush ho gaya
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Krshychait
April 12, 2010 at 3:31 PM
Great work Mayank bhai...
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Wah! Wah! kya khoob.....dil kush ho gaya
ReplyDeleteGreat work Mayank bhai...
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